ॐ - महादेव के पाँच मुखों का नाम क्या है?
हम महादेव के भक्त है और हमें उनके पंचानन अवतार के बारे में पता होना चाहिए। इसीलिए आज मैं इसे ही बताने की कोशिश करूँगा ॐ
नमस्कार दोस्तों, आशा करता हूँ कि आप लोग सकुशल होंगे। एक दिन में अपनी गाड़ी से वापस घर आ रहा था, तब मेरे मन में एक प्रश्न आया की महादेव के पंचानन अवतार की क्या कहानी है और क्या उनके पाँचों मुखों के कोई नाम है? इस प्रश्न के साथ मैं आगे बढ़ा, कुछ लोगों से बात की, कुछ किताबें पढ़ी तो मुझे एक संतोषजनक उत्तर मिला। यही उत्तर आज मैं सभी महादेव भक्तों के साथ साझा करना चाहता हूँ।
देखिए भगवान शंकर के पांच मुखों में ऊर्ध्व मुख ईशान दुग्ध जैसे रंग का, पूर्व मुख तत्पुरुष पीत वर्ण का, दक्षिण मुख अघोर नील वर्ण का, पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का और उत्तर मुख वामदेव कृष्ण वर्ण का है। भगवान शिव के पांच मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है।
भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात् विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला। निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं। शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष अर्थात अपने आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान अर्थात जगत का स्वामी।
नाम जानने के बाद, प्रश्न ये आता है कि महादेव ने यह अवतार क्यों लिया? तो इसकी भी एक कथा है जिसके अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने अत्यन्त मनोहर किशोर रूप धारण किया। उस मनोहर रूप को देखने के लिए चतुर्भुज ब्रह्मा, बहुमुख वाले शेष, सहस्त्राक्ष मुख धारण कर इन्द्र आदि देवता आए। सभी ने भगवान के इस रूप का आनंद लिया तो भगवान शिव सोचने लगे कि यदि मेरे भी अनेक मुख होते तो मैं भी अनेक नेत्रों से भगवान के इस किशोर रूप का सबसे अधिक दर्शन करता। कैलाशपति के मन में इस इच्छा के उत्पन्न होते ही वे पंचमुख हो गए।
एक अन्य मान्यता के अनुसार सृष्टि के आरंभ में जब कुछ नहीं था तब प्रथम देव शिव ने ही सृष्टि की रचना के लिए पंच मुख धारण किये या कहें कि शिवजी ने जीवन को उत्पन्न किया इसलिए पंचमुखी कहलाये। त्रिनेत्रधारी शिव के पांच मुख से ही पांच तत्वों जल, वायु, अग्नि, आकाश, पृथ्वी की उत्पत्ति हुई इसलिए श्री शिव के ये पांच मुख पंचतत्व भी माने गए हैं।
भगवान शिव के पंचमुखी अवतरों का वर्णन —
सद्योजात अवतार
एक समय जब ब्रह्मा सृष्टि रचना के ज्ञान के लिए परब्रह्म का ध्यान कर रहे थे तब भगवान शंकर ने उन्हें अपने पहले अवतार ‘सद्योजात रूप’ में दर्शन दिए । इसमें वे एक श्वेत और लोहित वर्ण वाले शिखाधारी कुमार के रूप में प्रकट हुए और ‘सद्योजात मन्त्र’ देकर ब्रह्माजी को सृष्टि रचना के योग्य बनाया।
वामदेव अवतार
रक्तवर्ण ब्रह्मा पुत्र की कामना से परमेश्वर का ध्यान कर रहे थे उसी समय उनसे एक पुत्र प्रकट हुआ जिसने लाल रंग के वस्त्र-आभूषण धारण किये थे । यह भगवान शंकर का ‘वामदेव रूप’ था और दूसरा अवतार था जो ब्रह्माजी के जीव-सुलभ अज्ञान को हटाने के लिए तथा सृष्टि रचना की शक्ति देने के लिए था।
तत्पुरुष अवतार
भगवान शिव का ‘तत्पुरुष’ नामक तीसरा अवतार पीतवासा नाम के इक्कीसवें कल्प में हुआ। इसमें ब्रह्मा पीले वस्त्र, पीली माला, पीला चंदन धारण कर जब सृष्टि रचना के लिए व्यग्र होने लगे तब भगवान शंकर ने उन्हें ‘तत्पुरुष रूप’ में दर्शन देकर इस गायत्री-मन्त्र का उपदेश किया —
‘तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रयोदयात् ।’
इस मन्त्र के अद्भुत प्रभाव से ब्रह्मा सृष्टि की रचना में समर्थ हुए ।
अघोर अवतार
शिव’ नामक कल्प में भगवान शिव का ‘अघोर’ नामक चौथा अवतार हुआ । ब्रह्मा जब सृष्टि रचना के लिए चिन्तित हुए, तब भगवान ने उन्हें ‘अघोर रूप’ में दर्शन दिए । भगवान शिव का अघोर रूप महाभयंकर है जिसमें वे कृष्ण-पिंगल वर्ण वाले, काला वस्त्र, काली पगड़ी, काला यज्ञोपवीत और काला मुकुट धारण किये हैं तथा मस्तक पर चंदन भी काले रंग का है । भगवान शंकर ने ब्रह्माजी को ‘अघोर मन्त्र’ दिया जिससे वे सृष्टि रचना में समर्थ हुए।
ईशान अवतार
विश्वरूप नामक कल्प में भगवान शिव का ‘ईशान’ नामक पांचवा अवतार हुआ । ब्रह्माजी पुत्र की कामना से मन-ही-मन शिवजी का ध्यान कर रहे थे, उसी समय सिंहनाद करती हुईं सरस्वती सहित भगवान ‘ईशान’ प्रकट हुए जिनका स्फटिक के समान उज्ज्वल वर्ण था । भगवान ईशान ने सरस्वती सहित ब्रह्माजी को सन्मार्ग का उपदेश देकर कृतार्थ किया।
अत:साधकों भगवान शिव के इन पंचमुख Panchmukhi Shiv के अवतार की कथा पढ़ने और सुनने का बहुत माहात्म्य है । यह प्रसंग मनुष्य के अंदर शिव-भक्ति जाग्रत करने के साथ ही उसकी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कर परम गति प्रदान करने वाला है।
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